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फंस या फंसा गए चंपाई! भगवा टाइगर से भाजपा में कोहराम, अब रमेश हांसदा ने बढ़ाई उलझन
झाममो के प्रति चंपाई का सोफ्ट स्टैंड,क्या है इसके मायने?
कई सियासी जानकारों का मानना है कि यह चंपाई सोरेन की अपनी गणित और सियासी रणनीति का हिस्सा है. चंपाई सोरेन झामुमो के साथ अपने रिश्ते को उस हद तक खराब नहीं करना चाहते, जहां से पीछे मुड़कर देखना भी मुश्किल हो, और उनका भी हश्र वही जाय जो कभी दलाल भुइंया, कृष्णा मार्डी, शैलेन्द्र महतो के साथ ही दूसरे नेताओं का हुआ था.
रांची: सियासत में कभी भी कोई दांव अंतिम नहीं होता, हर दांव की एक काट होती है, और कई बार जिस दांव के सहारे बाजी हाथ आती नजर आती है, वही दांव हार का कारण बन भी जाता है, ठीक यही स्थिति चंपाई सोरेन के पालाबदल के बाद कोल्हान की सियासत में देखने को मिल रही है. हालांकि चंपाई का साइट इफेक्ट भाजपा के अंदर औपाचारिक एंट्री के पहले ही दिखने लगा था, जैसे ही चंपाई सोरेन का भाजपा में जाने की खबर पुख्ता हुई सराईकेला की सियासत में भाजपा का एक बड़ा चेहरा माने जाने वाले बास्को बेसरा फूल-माला के साथ सीएम हेमंत से मिलने पहुंचे गये थें, उस वक्त ही इस बात का पुख्ता संकेत मिल चुका था कि चंपाई को साध कर भाजपा ने भले ही झामुमो का किला कोल्हान को भेदने में की दिशा में एक मजबूत कदम है, लेकिन इसके साथ ही चुनौतियों का पहाड़ भी खड़ा होने वाला है. इस सफलता के बाद उसे अब अपनी सारी उर्जी अपने घर को सुरक्षित बनाये रखने में लगानी होगी. उसके सामने पहले से ही सियासी अखाड़े में कूदने की चाहत रखने वाले अपने कार्यकर्ताओं की चाहत को पूरा करने की चुनौती होगी, यदि कार्यकर्ताओं मेंं निराशा छाई, असमंजस की स्थिति निर्मित हुई तो फिर पार्टी के अंदर से भी बगावत की खबरें आयेगी. यह स्थिति सिर्फ सराइकेला में नहीं होगी, दूसरे विधानसभा के अंदर से भी यही तस्वीर आयेगी. भाजपा में एंट्री के बाद चंपाई सोरेन की चाहत कोल्हान के 14 विधानसभा की सीटों पर अपने-अपने चेहतों को मैदान में उतारने की होगी. इसके बाद ही झामुमो के अंदर कोई टूट की संभावना पैदा होगी, यदि चंपाई सोरेन अपने समर्थकों को टिकट दिलवाने की स्थिति में ही नहीं होंगे, तो फिर कोई भी कार्यकर्ता इस पालाबदल के साथ खड़ा होकर अपना सियासी भविष्य दांव पर क्यों लगायेगा? और यदि चंपाई अपने चेहतों को फीट करने की स्थिति में होंगे, तो फिर भाजपा कार्यकर्ताओं के अंदर जो हताशा और असंतोष की स्थिति पैदा होगी, उस पर नियंत्रण स्थापित करना एक बड़ी चुनौती होगी.
झामुमो अटूट, भाजपा के अंदर सुगबुआहट क्यों?
यही कारण है कि जैसे ही चंपाई सोरेन ने भाजपा के साथ जाने का एलान किया. पहला मोर्चा बास्को बेसरा की ओर से खुलता नजर आया. बास्को बेसरा ने बगैर किसी देरी के सीएम हेमंत को गुलदस्ता भेंट कर अपनी चाहत से अवगत करवा दिया और अब खबर यह है कि पिछले पांच वर्षों से सराइकेला में भाजपा की जमीन तैयार करते रहे रमेश हांसदा भी इस कतार में लग चुके हैं. बोस्को बेसरा ने सीएम हेमंत से मुलाकात के लिए गम्हरिया के कार्यक्रम को चुना, तो रमेश हांसदा ने झामुमो के अपने पुराने सम्पर्क सूत्रों के सहारे संदेशा भिजवाया. बताया जा रहा है कि यह बातचीत अब अंतिम दौर में है और बहुत जल्द भाजपा को अलविदा कहने की तैयारी है. लेकिन भाजपा की चुनौती यहीं खत्म नहीं होती, दूसरे विधानसभा के अंदर से भी यही मुसीबत आने वाली है, कई कद्दावर चेहरे झामुमो सम्पर्क में हैं, सिर्फ हालात को समझने की कोशिश की जा रही है. जैसे ही लगता है इस चंपाई इफेक्ट में टिकट पर संकट है, पालाबदल की औपचारिक घोषणा कर दी जायेगी.
झामुमो के प्रति चंपाई सोरेन की नरमी की वजह?
इधर झाममो के प्रति चंपाई सोरेन के सोफ्ट स्टैंड से भी भाजपा की उलझनें बढ़ती नजर आ रही है. पालाबदल के बावजूद भी चंपाई सोरेन के बयानों में झामुमो की प्रति उस तल्खी का अभाव है, जिसकी आशा भाजपा रणनीतिकारों की ओर से की गयी थी. इसके विपरीत चंपाई के निशाने पर कांग्रेस है. अतीत के पुराने पन्नों को खोलते हुए कांग्रेस को आदिवासी–मूलवासियों का सबसे बड़ा दुश्मन बताते हुए चंपाई सोरेन झामुमो के खिलाफ कुछ भी बोलने से परहेज करते दिख रहे है. जबकि उस दौर को खत्म हुए एक अर्सा हो चुका है, जब कोल्हान की सियासत में कांग्रेस की तूती बोलती थी. भाजपा की तरह ही आज कांग्रेस का भी कोल्हान के सियासत में कोई खास वजूद नहीं है. विधानसभा की 14 में से कुल जमा जगन्नाथपुर और पश्चिमी जमशेदपुर सीट ही अब उसके पास है और इसमें भी जगन्नाथपुर को मधु कोड़ा का गढ़ माना जाता है. दावा किया जाता है कि सोनाराम सिंकू की विधायकी का सफर कोड़ा फैमली के आशीर्वाद से पूरा हुआ था. यदि इस बार यह सीट निकलती भी हो तो इसके लिए कांग्रेस के बजाय झामुमो को अपनी पूरी ताकत लगानी होगी. जगन्नाथपुर के अखाड़े में कांग्रेस के बजाय झामुमो की अग्नि परीक्षा होनी है. अब झामुमो के इस किले में चंपाई के निशाने पर कांग्रेस क्यों है, इसको लेकर सियासी गलियारों में कई दावे हैं.
क्या है चंपाई सोरेन का सियासी गणित
कई सियासी जानकारों का मानना है कि यह चंपाई सोरेन की अपनी गणित और सियासी रणनीति का हिस्सा है. चंपाई सोरेन झामुमो के साथ अपने रिश्ते को उस हद तक खराब नहीं करना चाहते, जहां से पीछे मुड़कर देखना भी मुश्किल हो, और उनका भी हश्र वही जाय जो कभी दुलाल भुइंया, कृष्णा मार्डी, शैलेन्द्र महतो के साथ ही दूसरे नेताओं का हुआ था. खास कर झामुमो से बगावत के बाद कृष्णा मार्डी का जो सियासी अधोपतन हुआ, वह काफी डरावना है, जिस कृष्णा मार्डी ने कभी आठ विधायक और एक सांसद के साथ पार्टी में अब तक का सबसे बड़ा टूट किया था, आज कोल्हान की सियासत में उस कृष्णा मार्डी को दूर-दूर तक कोई नाम लेने वाला नहीं है. कुछ यही स्थिति शैलेन्द्र महतो, दुलाल भुइंया, सूरज मंडल, साइमन मरांडी, स्टीफन मरांडी और अभी हाल में हेमलाल मुर्मू के साथ हुआ, इतिहास के सबक से सीख लेते हुए चंपाई सोरेन झामुमो के लिए एक खिड़की अभी खुला रखना चाहते हैं, और यही झामुमो के प्रति सोप्ट भाषा का कारण है. जबकि दूसरे कई जानकारों का मानना है कि झामुमो के प्रति कठोर रवैया अपना कर चंपाई सोरेन के पुराने कार्यकर्ताओं को अपने से दूर नहीं करना चाहते. झामुमो के प्रति जरुरत से ज्यादा तल्ख भाषा सराईकेला में उनके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है. इस हालत में अपने पालाबदल से चंपाई सोरेन फंस गये हैं या भाजपा को फंसा गयें, इसका फैसला तो चुनावी अखाड़े में होगा, लेकिन इतना तय है कि राह आसान नहीं रहने वाली है, और चंपाई के इस सियासी खेल के बाद भाजपा के अंदर भी किसी बड़े खेल की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता