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चंदनकियारी की जंग: अमर बाउरी की राह में उमाकांत रजक का कांटा!
सियासी फिजाओं में किशोर कुमार रजक की भी चर्चा तेज

किशोर कुमार रजक भी अनुसूचित जाति से आते हैं, और यह सीट भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. हालांकि, सरकारी सेवा में रहते हुए किशोर रजक का सियासी मुद्दों पर यह कोई पहली प्रतिक्रिया नहीं है. जल जंगल और जमीन की लड़ाई हो या झारखंडी अस्मिता का सवाल, किशोक कुमार अपनी बेबाक प्रतिक्रिया देते रहे हैं. लेकिन विधान सभा चुनाव के ठीक पहले जिस अंदाज में उन्होंने अपनी रगों के अंदर बहते झारखंड अस्मिता का ताल ठोका है, उसके गंभीर मायने और निहितार्थ है. देखना दिलचस्प होगा कि रगों में बहता यह झारखंडी प्रेम क्या सियासी अखाड़े में भी उतरने को बाध्य करता है? और यदि ऐसा होता है तो फिर सियासी ठिकाना क्या होगा?
रांची: जैसे- जैसे विधान सभा चुनाव की सरगर्मी तेज हो रही है, सियासी दलों के बीच रणबाकुंरों की खोज जारी है. सियासी प्यादों को मोर्चे पर तैनात करने की शुरुआत हो चुकी है. साथ ही इंडिया गठबंधन हो या आजसू भाजपा की जोड़ी सीट शेयरिंग को लेकर सहयोगी दलों के अंदर कश्मकश की स्थिति भी देखने को मिल रही है. कुछ इसी तरह की कश्मकश चंदनकियारी विधान सभा में भी देखने को मिल रही है. भाजपा इसे जीती हुई सीट मान कर इसे अपने हिस्से की सीट मान रही है, वहीं आजसू वर्ष 2009 में उमाकांत रजक की जीत का हवाला देते हुए अपना दावा ठोक रही है.
वर्ष 2009 के बाद उमाकांत रजक को जीत का इंतजार

दरअसल वर्ष 2009 में आजसू के उमाकांत रजक ने झाविमो के बनैर तले मैदान में कूदे अमर बाउरी को सियासी पटकनी देने में कामयाबी हासिल की थी,उस मुकाबले में उमाकांत रजक को 36,620 वोट मिले थें, वहीं अमर बाउरी को 33,103 के साथ दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था. लेकिन वर्ष 2014 के मुकाबले में अमर बाउरी ने इस हार का बदला लेते हुए उमाकांत रजक को 34,164 मतों के विशाल अंतर से पराजित करने में सफलता हासिल की. इस मुकाबले में जहां अमर बाउरी को 81,925 मिले थें. वहीं उमाकांत रजक को महज 47,761 पर संतोष करना पड़ा था. लेकिन इस जीत के बाद अमर बाउरी ने बाबूलाल मरांडी के साथ नहीं रह सकें और भाजपा का दामन थाम लिया. वर्ष 2019 में जब भाजपा आजसू अलग-अलग अखाड़े में कूदे थें, तब भी अमर बाउरी ने उमाकांत रजक को 9,211 मतों से पराजित करने में कामयाबी हासिल की.
झाविमो और भाजपा के चुनाव चिह्न पर जीत दर्ज कर चुके हैं अमर बाउरी
यानि इस सीट पर अमर बाउरी अलग अलग चुनाव चिह्न पर लगातार दो बार जीत दर्ज कर चुके हैं. वहीं उमाकांत रजक वर्ष 2009 के बाद जीत का इंतजार कर रहे हैं, बड़ी बात यह है कि उमाकांत रजक का मुकाबला अमर बाउरी के साथ ही होता रहा है, दोनों के बीच का यह सियासी संघर्ष 2005 जारी है, वर्ष 2005 में ही पहली बार अमर बाउरी ने झारखंड वनाचंल कांग्रेस के बनैर तले चंदनकियारी में ताल ठोका था.
समरेश सिंह की सियासी खोज हैं अमर बाउरी
आपको बता दें कि झारखंड वनांचल कांग्रेस का गठन भाजपा के कद्दावर नेता माने जाने वाले समरेश सिंह के द्वारा किया गया था. बाद के दिनों में इसका बहुजन पार्टी में विलय हो गया. बोकारो की सियासत और राज्य की राजनीति में समरेश सिंह को एक बड़ा चेहरा माना जाता था. समरेश सिंह की गिनती भाजपा के संस्थापक सदस्यों में होती है, आज भाजपा के पास जो कमल चुनाव चिह्न पर है, वर्ष 1980 में भाजपा के प्रथम अधिवेशन में इसका सुझाव भी समरेश सिंह ही ने दिया था. अमर बाउरी को सियासी रुप से आगे बढ़ाने में समरेश सिंह का अहम योगदान रहा, बाद के दिनों में जब भाजपा के साथ अनबन की स्थिति बनी तो समरेश सिंह ने वनांचल कांग्रेस का गठन किया गया, लेकिन इस बनैर के तले कोई खास सफलता हाथ नहीं लगी तो वह बाबूलाल मरांडी के साथ झाविमो का हिस्सा बन गयें. झाविमो में उन्हे उपाध्यक्ष की जिम्मेवारी सौंपी गयी थी, समरेश सिंह की अनुशंसा पर अमर बाउरी को चंदन कियारी से मोर्चे पर उतारा गया था.
अमर बाउरी के राह में कांटा, दावेदारों की फौज

लेकिन समरेश सिंह ने जिस चंदन कियारी के मोर्चे पर अमर बाउरी को तैनात किया था. इस बार उस चंदनकियारी में
अमर बाउरी के सामने एक साथ कई चुनौती सामने आती दिख रही है, पहली चुनौती तो उमाकांत रजक की ओर से मिलती दिख रही है, उमाकांत रजक अमर बाउरी के लिए इस सीट को छोड़ने को तैयार नहीं दिख रहे, उमाकांत रजक के लिए यह सियासी अस्तित्व का सवाल भी है, यदि इस बार उमाकांत रजक इस बार मुकाबले से बाहर होते हैं, तो उनकी सियासत पर विराम लगने का खतरा मंडरा सकता है. इस हालत में देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा आजसू गठबंधन में यह सीट किसके हिस्से जाती है, और यदि यह सीट भाजपा के हिस्से जाती है तो फिर उस हालत में उमाकांत रजक की भूमिका क्या होगी?
हारु राजवार के बाद मजबूत चेहरे की खोज में झामुमो

जहां तक झामुमो का सवाल है, तो उसके पास चंदन कियारी से कोई मजबूत चेहरा तो नजर नहीं आता, हालांकि हारु राजवार ने वर्ष 2000 और 2005 में लगातार इस सीट से झामुमो के बनैर तले जीत दर्ज की थी. लेकिन वर्ष 2019 में झामुमो इस सीट से विजय कुमार राजवार को मोर्चे पर तैनात किया था, और 36,400 के साथ विजय कुमार राजवार ने मजबूत प्रर्दशन भी किया था, बावजूद इसके अमर बाउरी ने 31,339 के साथ अपनी वापसी करने में कामयाबी हासिल की थी, इस मुकाबले मे जहां अमर बाउरी को 67,739 वोट के साथ जीत की वरमाला मिली थी, वहीं 58,528 वोट के साथ उमाकांत रजक को दूसरे स्थान पर संतोष करना पड़ा था, जबकि 36,400 के साथ झामुमो के विजय कुमार राजवार को तीसरा स्थान पर सिमटना पड़ा था, साफ है कि उमकांत रजक चंदनकियारी की सियासत में एक मजबूत चेहरा है और यदि चंदनकियारी में इस बार कोई बड़ा उलटफेर होता है, तो इसका कारण उमाकांत रजक ही होंगे.
चंदनकियारी की फिजाओं में किशोर कुमार रजक की एंट्री की चर्चा तेज
हालांकि उमाकांत रजक, विजय कुमार राजवार के साथ ही इस बार चंदनकियारी की सियासी फिजाओं में एक और चेहरे की एंट्री की चर्चा भी तेज है, और वह चेहरा है झारखंड का चर्चित डीसएसपी किशोर कुमार रजक का. निशिकांत दुबे के द्वारा संताल को झारखंड से अलग कर केन्द्र शासित प्रदेश बनाने की मांग पर जिस तरीके से किशोर कुमार रजक की प्रतिक्रिया आयी है. सरकारी सेवा में रहने के बावजूद जिस अंदाज में मोर्चा खोला है, इस बात का एलान किया है कि यदि झारखंड को विभाजित करने साजिश रची गयी तो नौकरी छोड़ कर एकीकृत झारखंड के लिए आन्दोलनकारी हो जाउंगा. उसके कई मायने हैं.
संघर्ष व्यर्थ नहीं जाने दूंगा: डीएसपी किशोर कुमार रजक
पने सोशल मीडिया एकाउंट फेसबूक पर किशोर कुमार रजक ने लिखा है कि “माननीय सांसद निशिकांत दुबे जी ने, झारखंड के संथाल परगना को बिहार एवं बंगाल के कुछ जिलों के साथ मिलाकर केंद्र-शासित प्रदेश बनाने की मांग की है। यकीनन यह मांग बेहद गंभीर,असामान्य एवं अस्वीकार्य है। ध्यान रहे, संसद को नए राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के गठन करने का अभिन्न अधिकार है। संसद को राज्यों की सीमा में भी परिवर्तन करने का निर्णायक अधिकार प्राप्त है। यदि झारखण्ड का विभाजन हुआ तो मैं नौकरी छोड़कर एकीकृत झारखण्ड के लिए आंदोलनकारी बन जाऊंगा।अलग राज्य के लिए 88 वर्षों का संघर्ष,लाखो लोगों की कुर्बानी और हजारों शहीदों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाने दिया जायेगा। जहाँ तक झारखण्ड में बांग्लादेशी घुसपैठ और डेमोग्राफी में परिवर्तन की बात है तो जल्द ही एक वीडियो बनाउंगा। मैं वचन देता हूं। तर्क,तथ्य और आंकड़ों से 100% भ्रम दूर करने में कामयाब रहूंगा। मेरे रग-रग में झारखण्ड के प्रति प्रेम है। इसीलिए कोई भी झारखण्ड के विभाजन की बात करेगा तो मै अपनी प्रतिक्रिया जरूर दूंगा।
ध्यान रहे कि किशोर कुमार रजक फिलहाल सरकारी सेवा है, बावजूद इसके नौकरी छोड़ आन्दोलनकारी बनने की चेतावनी दे रहे हैं. तो क्या इसके कुछ सियासी मायने भी है, क्या किशोर कुमार रजक के अंदर भी कोई सियासी खिचड़ी पक रही है, क्या विधान सभा चुनाव के पहले चंदनकियारी में कोई बड़ा खेल होने वाला है, हालांकि अभी तक किशोर कुमार रजक ने सियासी एंट्री के एलान नहीं किया है, लेकिन जिस अंदाज में नौकरी छोड़ने की बात कर रहे हैं, उसके गहरे निहितार्थ है.
बोकारो के बुड्ढीबिनोर गांव निवासी हैं किशोर रजक

ध्यान रहे कि किशोर कुमार रजक भी बोकारो जिला के बुड्ढीबिनोर गांव के रहने वाले हैं. वर्ष 1986 में इसी गांव में दुर्योधन रजक और रेणुका देवी के घर इनका जन्म हुआ था. किशोर कुमार रजकअनुसूचित जाति से आते हैं, और यह सीट भी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है. हालांकि सरकारी सेवा में रहते हुए किशोर रजक का यह सियासी मुद्दों पर पहली सार्वजनिक प्रतिक्रिया नहीं है. जल जंगल और जमीन की लड़ाई हो या झारखंडी अस्मिता का सवाल, किशोर कुमार रजक पहले भी प्रतिक्रया देते रहे हैं. इस पोस्ट में भी वह इस बात का दावा कर रहे हैं कि उनके रग-रग में झारखंड है, इस हालत में देखना होगा कि उनके रगों में बहता यह झारखंडी प्रेम क्या सियासी अखाड़े में भी उतरने को बाध्य करता है, और यदि ऐसा होता है सियासी ठिकाना क्या होगा? सियासी जानकारों की माने तो किशोर रजक के सामने दो ही विकल्प हो सकता है, या तो वह जयराम की पार्टी के बनैर के साथ मोर्चे पर कूदे या झामुमो के साथ सियासी पारी की शुरुआत करें.